कोयल बोली मीठी बानी, जैसे बजे मधुर तान,
डाली-डाली झूम उठी है, हरियाली मुस्कान।
नीम की डाली पर बैठी, गाए प्यारा गीत,
सुनते ही मन हर्षित होता, हर बच्चा हो प्रीत।
भोर हुई तो गूंजी बगिया, उसके मीठे राग,
कोयल जैसे पाठ पढ़ाए, प्रेम-शांति का भाग।
न फूटे कोई क्रोध धरा पर, न हो मन में बैर,
उसकी बोली सिखा रही है, दुनिया में सब गैर?
सावन की वो सखी बनी है, फागुन की पहचान,
जिसने उसको मन से जाना, पा लिया भगवान।
आओ मिलकर हम सब गाएं, कोयल जैसा गीत,
प्रकृति-मित्र बनें हम ऐसे, न हो कोई रीत-बीत।
सुरेश कुमार गौरव
प्रधानाध्यापक, उ.मा.वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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