खरहे की चतुराई -सुधीर कुमार

Sudhir

सुधीर कुमार

एक बार एक खरहे को था ,
एक सियार ने घेरा ।
लगा सोचने मन में खरहा ,
कैसा पड़ा ये फेरा ।
खरहे ने देखा कि अब तो ,
जान पे है बन आई ।
सोंच के बोला खरहा ,
सुन लो ओ , मम्मी के भाई ।
मम्मी कहती थी कि सुंदर ,
तुम गीत सुनाया करते ।
अपनी मीठे गीतों से तुम ,
सबके मन को हरते ।
खाने से पहले मुझको एक ,
गीत सुना दो अच्छा ।
अंतिम इच्छा पूरी कर दो ,
मेरे मामा सच्चा ।
लगा सियार तब गाने गाना ,
खुश होके बड़ी जोर से ।
दाद लगा फिर देने खरहा ,
वाह वाह के शोर से ।
मस्ती चढ़ गई उस सियार को ,
सुनके अपनी प्रशंसा ।
गाने लगा मूंदकर आंखें ,
समझा न खरहे की मंशा ।
खरहे ने जब आंखें मूंदकर ,
देखा उस को गाते ।
चुपको से वह भागा जल्दी ,
लंबी छलांग लगाते ।
इसी तरह बच्चों जब तुम पर ,
आये कोई मुसीबत ,
मत घबड़ाओ,हल कोई सोंचो ,
रख के सच्ची नीयत ।

सुधीर कुमार
किशनगंज बिहार

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