खेल- रामकिशोर पाठक

 

खेल-खेल कर बड़े हुए हम

घुटनों से अब खड़े हुए हम।

है इससे कुछ ऐसा नाता,

बच्चे बूढ़े सभी को भाता।

बचपन का यह मित्र महान,

कह गए हैं यह चतुर सुजान।

है स्वास्थ्य का एक प्रहरी यह,

स्फूर्ति भरती मानो महरी यह।

जग का है चक्रवर्ती सम्राट,

विविध रूपों में बना विराट।

है व्यायाम का दूजा रूप,

बनाए सुडौल यह स्वरूप।

तन को देता स्फूर्ति है खेल,

मन प्रफुल्लित करता खेल।

स्पर्धा में जब होता है खेल,

उमड़ पड़ती दर्शक का मेल।

मन की कालिमा दूर भगाता,

पाठक को प्रेम पाठ पढ़ाता।।

राम किशोर पाठक

प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश

पालीगंज, पटना

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