संत शिरोमणि कवि तुलसी की, महिमा गाते जाइए।
पावन निर्मल भक्ति-भाव को, हृदय बसाते जाइए।
रामचरितमानस अति सुंदर, ज्ञान-विभूषित ग्रंथ है,
विनत भाव से प्रतिदिन पढ़कर, ज्ञान बढ़ाते जाइए।
दोहे मनहर चौपाई भी, अलंकार रस सिक्त हैं,
यही सौम्यता मन में लाकर, नित सरसाते जाइए।
सरल सहज भाषा अति सज्जित, जन-जन को भाती सदा,
सौम्य सुधा पा जीवन अपना, नित महकाते जाइए।।
संकट से व्याकुल मानव का, शुभ संबल मानस सदा,
निश्छल मन से प्रभु को भजकर, भाव पगाते जाइए।
धर्म-मार्ग पर हम सब चलकर, करें आचरण स्वच्छ-सा,
गुण मर्यादा प्रतिदिन रखकर, राह दिखाते जाइए।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य वि० धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर
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