गुरुत्वाकर्षण का नियम
गुरु शब्द में ‘त्व’ प्रत्यय के योग से बना शब्द गुरुत्व,
जो अपना गुरुत्व सदा कायम रखे, है उसी का प्रभुत्व,
गुरुत्व शब्द का शाब्दिक अर्थ है भारीपन,
गुरुत्व, आकर्षण से मिल बना है गुरुत्वाकर्षण,
हुए महर्षि कणाद, भारत के एक दार्शनिक महान,
जिन्होंने सबसे पहले दी गुरुत्वाकर्षण की पहचान,
अपने ग्रंथ वैशेषिक सूत्र कहे अथवा वैशेषिक दर्शन,
उसी में बताया उन्होंने, क्या है गुरुत्व और गुरुत्वाकर्षण,
अपने ग्रंथ वैशेषिक दर्शन में संयोगाभावे गुरुत्वात् पतनम् यह उन्होंने सूत्र दिया,
संयोग के अभाव में पृथ्वी के गुरुत्व बल के कारण कोई वस्तु पृथ्वी की ओर गिर जाती है, यही इसका अर्थ हुआ,
भारत के हुए एक दार्शनिक महान,
भास्कराचार्य था जिनका नाम,
‘लीलावती’ गणित ग्रंथ का उन्होंने सृजन किया,
उस ग्रंथ में उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का वर्णन किया,
वर्षों बाद इंग्लैंड के हुए गणितज्ञ महान,
सर आइजक न्यूटन था जिनका नाम,
विषय गणित से विज्ञान की ओर वे मुड़े,
विषय विज्ञान से प्रतिबद्धता के साथ वे जुड़े,
कालान्तर में, वे महान वैज्ञानिक कहलाये,
गति और गुरुत्वाकर्षण का नियम बतलाये,
एक दिवस लेटे-लेटे उन्होंने पेड़ से सेब को अवनि की ओर गिरते देखा,
सेब धरा की ओर क्यों गिरा, ऊपर क्यों न गया, उन्होंने बहुत सोचा,
बहुत सोचकर, अन्वेषण, अनुसंधान कर, गुरुत्व बल और गुरुत्वाकर्षण के विषय में बतलाया,
गुरुत्वाकर्षण का श्रेष्ठ नियम देकर उनका विशेष सूत्र प्रतिपादित किया,
‘ब्रह्मांड में किन्हीं दो पिंडों के बीच का आकर्षण बल उन दोनों पिण्डों के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।’ यही तो यह नियम कहता है,
यदि दोनों पिण्डों के बीच का आकर्षण बल F हो, दोनों पिण्डों का द्रव्यमान क्रमशः m1 तथा m2 हो, उन पिण्डों के बीच की दूरी r हो, तो F समानुपाती (m1m2/r²) होता है,
आगे बढ़ें तो F= (Gm1m2/r²) सूत्र का श्रेय न्यूटन को ही जाता है,
इस सूत्र में G गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक कहलाता है, G = 6.67430 × 10 to the power minus 11 Nm²/Kg² होता है।
ब्रह्मांड में किन्हीं दो पिण्डों के बीच का आकर्षण बल गुरुत्वाकर्षण बल कहलाता है,
ब्रह्मांड में सभी पिण्डों का अपना गुरुत्वाकर्षण बल और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र होता है,
पृथ्वी जिस बल के द्वारा किसी वस्तु को अपनी ओर खींचती है, वह गुरुत्व बल/भार कहलाता है,
इसका मात्रक न्यूटन(N) या किलोग्राम-भार होता है, पर SI मात्रक न्यूटन(N) ही होता है,
गुरुत्वाकर्षण के दौरान जो त्वरण होता है, वह गुरुत्वीय त्वरण g कहलाता है,
हर पिण्डों के लिए g का मान परिवर्तनशील, किन्तु पृथ्वी पर g का मान 9.8 m/s² होता है,
गुरुत्व-गुरुत्वाकर्षण शब्द का श्रेय कणाद और भास्कराचार्य को, पर गुरुत्वाकर्षण के नियम और सूत्र का श्रेय सर आइजक न्यूटन को ही जाता है,
गुरुत्वाकर्षण/गुरुत्व(गांम्भीर्य/भारीपन) हर पिण्डों की तरह व्यक्ति में भी होता है, जो इसे कायम रखे, वह ही महान होता है।
…..गिरीन्द्र मोहन झा
