गोकुल की होली – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra Prasad Ravi

प्रभाती पुष्प

अबीर गुलाल संग
रंगो की बौछार होती,
कैसी होती लठ्ठमार, गोकुल की होली है।

गोकुल की ग्वालों पर
लाठियां है बरसातीं,
होलीयारिन बन के, गोपियों की टोली है।

छेड़ते बासंती राग,
सब मिल गाते फाग
गलियों में झूमते हैं, सभी हमजोली हैं।

राधा बनी हर नारी
लगती है गोपी प्यारी,
कन्हैया को ढूंढती वो, सूरत की भोली है।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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