चलो एक बार फिर जश्न मनाते हैं,
आज़ादी का मंत्र और नियमों का
है तंत्र गणतंत्र मनाते हैं।
राजनीति पर देखो जातीयता हावी है,
भाई भतीजावाद और क्षेत्रीयता प्रभावी है,
साम्प्रदायिक रंग में रंग दिया जाता मुद्दों को
देखो इंसानियत नही देता कही दिखाई है।
चलो फिर मुद्दों से अवगत कराते हैं,
गणतंत्र का पर्व कुछ इस तरह से मनाते हैं।
देखो गरीबी का हर तरफ बोलबाला है,
दो वक़्त का मिलता नही सबको निवाला है,
स्त्री अस्मिता अब भी खतरे में दिखाई पड़ती,
कानून के बँधे हाथ का दिया जाता हवाला है।
चलो हकीकत का आईना सबको दिखाते हैं
गणतंत्र का पर्व कुछ इस तरह से मनाते हैं।
सफेदपोशी की चादर ओढ़ अपनी जेब भरते हैं,
नियमों को ताक पर रखकर काम सारे करते हैं,
रिश्वतखोरी, जमाखोरी कालाबाजारी के संग
भ्रष्टाचार नये नये तरीकों से वह करते हैं।
चलो आज गणतंत्र दिवस में यह संकल्प करते हैं,
नव भारत निर्माण के लिए जतन सारे करते हैं।
रूचिका
रा.उ.म.वि. तेनुआ,गुठनी,सिवान बिहार