अंधाधुंध वन कटने लगे,
चलने लगी कुल्हाड़ियाँ।
होने लगा विनाश वनों का,
थी शहर की तैयारियाँ।
राजस्थान जहॉं पहले हीं,
वृक्ष रक्षा में नारियॉं।
तीन सौ तिरसठ जानें दी,
अमृता के संग पुत्रियाँ।
विश्नोई समाज खेजड़ली,
दे दी बलिदान नारियाँ।
मगर सिलसिला था थमा नहीं,
कटते रहे वन झारियॉं।
थी रेणी गॉंव चमोली की,
सीमांत नीती घाटियाँ।
अहिंसक प्रतिकार शुरू हुआ,
बचाये जंगल झाड़ियाँ।
चिपक गयीं पेड़ों से सब थीं,
गौरा के संग नारियाँ।
पर्यावरण की उपयोगिता,
फैलाने को जागृतियाँ।
वन अधिनियम देश में आया,
बनी भी वन की नीतियाँ।
काम कर रहीं इनके पीछे,
न जाने कितनी हस्तियाँ।
सुंदर लाल बहुगुणा की है,
चिपको की अनेक कृतियाँ।
बलिदानों अभियानों से हीं,
मिली ऐसी उपलब्धियाँ।
पेड़ बचाएँ प्रकृति सजाएँ,
यही आंदोलन सुर्खियाँ।
नमन हमारा है उनको जो,
आगे आयी कुमारियाँ।
चिपको आंदोलन की बातें,
हर वर्ष सुनो कहानियाँ।
सब चलें भलाई को अपने,
सुन पाठक की जुबानियाँ।
राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज, पटना