पूर्व अमित आख्यान सुन ,
क्यों नहीं तू सँभल रहे हो ?
किस द्वेष -राग मे लिप्त हो ,
मानवता को ठुकरा रहे हो ?
किन संकीर्ण स्वार्थों के बीच मे ,
तू अपनी निधि भुला रहे हो ?
किस विषवृक्ष से लिपट तू ,
विषकलश बरसा रहे हो ?
आलस्य में और द्वेष में ,
क्यों अपना पुरुषार्थ गँवा रहे हो ?
व्यर्थं ही तू शोक दे ,
क्यों दूसरों को रुला रहे हो ?
अपने स्वर्णिम भविष्य चिंतन में ,
मौन भी रहना पड़ेगा ।
सत्य , अहिंसा की दमक से ,
प्रेम को गहना पड़ेगा ।
युद्ध की परिणति करो अब ,
सृजन का पताका फहराओ ।
नित्य नूतन कलश से तू ,
रस सदा अमृत बहाओ ।
ऐसा न करो काम कभी ,
जिससे तुम्हे अपयश मिले ।
हो देश के ; देश के रहो ,
खुशियाँ सदा सारी मिले ।
यह जान लो ; कभी अपकृतियों के लिए ,
यश की भाषा न कभी गाई गई ।
जो दुर्वृत्त हो – अनाचारी बना ,
उसमें न तनिक श्रद्धा पाई गई ।
छोड़ न प्रेम की डगर ,
तुम मनस्वियों की संतान हो ।
छोड़ो कटार यदि अगर ,
इस लोक की तुम शान हो ।
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )