जीवन का क्या मोल है – महाचण्डिका छंद गीत
सुख की इच्छा में फँसा, विवश हुआ वह मौन है।
जीवन का क्या मोल है, यहाँ समझता कौन है।।
दे हाथों को हाथ में, प्रेम मग्न हो डोलना।
जिह्वा पर हो शारदा, मधुरस रखकर बोलना।।
हरपल अपना हीं भला, होता चलकर साथ में।
परहित रखकर भावना, भक्ति चरण रघुनाथ में।।
दर्पण मन का देखिए, रहता कभी न गौन है।
जीवन का क्या मोल है, यहाँ समझता कौन है।।०१।।
पाप कराता जो सदा, लालच का धन त्यागिए।
आँखें चाहे बंद हो, हरपल मन से जागिए।।
कुशल बनें व्यवहार से, कौन सगा है जानिए।
नीम हरे दुख आप का, अपनापन को मानिए।।
अपने चित सम मानिए, छोड़ भाव सब बौन है।
जीवन का क्या मोल है, यहाँ समझता कौन है।।०२।।
आलस निद्रा त्यागिए, आगे बढ़ते जाइए।
सद्कर्मों के साथ में, अपनी मंजिल पाइए।।
ईश कृपा मिलती रहे, पुष्प बिछें हो राह में।
अटल जहाँ विश्वास है, मंजिल उसकी चाह में।
“पाठक” सबका हो गया, प्रेम लिया जब सौन है।
जीवन का क्या मोल है, यहाँ समझता कौन है।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
