जीवन – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

जीवन

दिन और वर्ष की तरह ही होता है जीवन,
दिन में सूर्य उदित होते अरुणिमा के संग,
सुबह का सुहावना होता पल, जैसे बालापन,
ओज-तेज बढ़े तो मानो जैसे आया युवापन,
दोपहर का समय पसीने, कमाई, खटाई का समय,
धीरे-धीरे सूरज ढलने लगता है, जैसे हो अस्ताचल,
रात्रि का समय में, क्या किये, क्या नहीं, करते आत्म-आकलन,
अधिक विस्तार में क्या कहूं, यही तो है हमारा समग्र जीवन,
वर्ष में भी छ: ऋतु होते हैं, वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, हेमन्त, शीत,
उत्साह, पसीने, पतझड़, आनंद, इसी में तो जीवन जाता बीत ।
…..गिरीन्द्र मोहन झा

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