प्रज्ञा की ज्योति जलाए जो,
अंधकार को दूर भगाए जो।
ज्ञान का दीपक बनकर चमके,
हर मन में उम्मीद जगाए जो।
चलो प्रज्ञाणिका बन जाएँ,
सत्य-पथ पर कदम बढ़ाएँ।
अज्ञान की बेड़ियाँ तोड़कर,
नव सोच की किरणें फैलाएँ।
संघर्षों से घबराना कैसा?
हर मुश्किल में है हल छिपा।
जो सीख सहेजे, आगे बढ़े,
वही असल में है विजेता बना।
प्रज्ञा ही शक्ति, प्रज्ञा ही राह,
सपनों को दे यह नयी चाह।
ज्ञान के दीप जलाकर देखो,
हर अंधियारा होगा तब विदा।
तो बढ़ो, अडिग रहो,
निरंतर सीखते जियो।
प्रज्ञाणिका बनकर इस जग में,
नई रोशनी के दीप धरो।
अनिष चंद्रा रेणु
उत्क्रमित हाइ स्कूल बुढ़कारा
कटरा मुजफ्फरपुर
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