आओ मिलकर दीप जलाएं दिवाली की रात में,
दिल का अंधेरा दूर है होता प्रेम की सौगात में।
दिन रात एक कर घरों को सजाते हैं,
परिजन मिलकर रंगोली बनाते हैं,
गम सारे भूल जाते बच्चों की जमात में।
कभी-कभी बातें होती दिल नहीं मिलता,
बिना बीज बोए बाग़ फूल नहीं खिलता,
बैठ आपस में चर्चा करें मुलाकात में।
अधिकांश तीर लोग चलाते अंधेरे में,
उनका इरादा होता सवालों के घेरे में,
नहीं बनें जयचंद हम दाल भात में।
जिंदगी की दौड़ में जो पीछे छूट जाते हैं,
लोग उनकी भावना समझ नहीं पाते हैं,
कभी बात बन जाती एक मुलाकात में।
अनजान लोगों पर भरोसा नहीं करिए,
संगी-साथी, मित्र-शत्रु पहले परखिए,
जिंदगी की चाबी रखें अपने ही हाथ में।
प्रेम मिला इंक भरें दिल की दवात में।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’