रखें शिष्य के शीश पर, गुरु आशिष का हाथ।
तिमिर सर्वदा दूर हों, पथ आलोकित साथ।।
विद्यालय है ज्ञान का, परम सुघर भंडार।
छात्र सदा पाते यहाँ, एक नया संसार।।
विद्यालय में ज्ञान का, करते रहिए दान।
प्रतिदिन ज्ञानाभ्यास से, मिलता है सम्मान।।
बच्चे कोमल भाव के, सौम्य सरल प्रतिरूप।
अच्छी शिक्षा से सदा, करिए और अनूप।।
पुस्तक जैसा है नहीं, कोई सच्चा मित्र।
सरल सुवासित भाव की, नित फैलाती इत्र।।
बच्चों के मन में भरें, अभिनव नैतिक ज्ञान।
अमिट ज्ञान पाकर सदा, बनते देश महान।।
नव प्रत्यूषा से सदा, करें विमल परिवेश।
पावन निर्मल भाव में, नहीं किसी को क्लेश।।
अंतर्मन से कर्म को, देखें सौ सौ बार।
सच्चे कर्मों में छिपा, जीवन का उपहार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा,
सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार