शीत मास में हम सभी, रखें गात का ध्यान।
स्वस्थ देह सद्कर्म ही, सुखद शांति संज्ञान।।
दस्तक दी है शीत ने, ओढ़ रजाई प्रीति।
हों सेवन रवि-रश्मि का, यही सुखद हों रीति।।
शीत-धूप लगती भली, करता मन अभिराम।
नित्य रजाई ठंड से, करती रक्षा काम।।
स्नेहिल कंबल ओढ़कर, जगा सुखद उल्लास।
शीतलहर मानो खड़ी, प्रेम-द्वार के पास।।
शीतलहर से चाहिए, अगर आपको त्राण।
ऊनी कंबल ओढ़कर, रखें सुरक्षित प्राण।।
मौसम है यह ठंड का, सेहत पर हो ध्यान।
स्वेटर से तन को ढकें, मफलर से नित कान।।
हाड़ कँपाती ठंड है, नित्य जलाएँ आग।
धूप शीत की गुनगुनी, मन को करती बाग।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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