नशा सेवन करने से ,
कितने घर बर्बाद हुए ?
शत्रु जिसको समझा आपने ,
उसके घर आबाद हुए ।
नशा छोटी हो या बड़ी ,
दुखदायी बड़ी होती है ।
कर्ज लेकर नशा करने को ,
अभिशप्त हमे कर देती है ।
मन की शांति छिन्न – भिन्न कर ,
यह तन को पीड़ा देती है ।
समग्र रूप से हानि कर ,
यह कार्य विमुख कर देती है ।
शरीर खोखला होने से ,
ओज चला सब जाता है ।
आगे -पीछे की सोच यहीं से ,
खत्म सदा हो जाता है ।
भारत से नशा शीघ्र मिटाएँ ,
सदा -सदा हम खुश रह पाएँ।
चलें सुसंगति की नींव बनाएं,
सदाचरण कहीं छूट न जाए ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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