आज के भटकते समाज मे ,
नारी की स्थिति क्या होती है ?
दिन -रात निज कर्म में रह ,
अभिशप्त जीवन ही जीती है ।
सीता – सावित्री की कल्पना ,
नर का केवल होता है ।
नर न राम बन पाता ,
कष्ट इसी से होता है ।
अपने करते पाप यजन ,
पर उसे माफ नहीं कर पाते ।
काम , क्रोध ,लोभ के मग में ,
समस्त राष्ट्र पर हैं छाते ।
जहाँ भी सुख -शांति चाहो ,
वहाँ नारी का सम्मान करो ।
अपने यश उज्ज्वल करने में ,
समुचित उसका मान करो ।
माँ का कितना सुंदर चित्रण ,
उसके ही कर में होता है ।
बहन सरीखा सद्भाव मिलन का ,
प्यारा कितना होता है ?
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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