नित दिन प्रातः आता सूरज
नित नया सिखलाता है।
नित सवेरे आकर कहता,
नया जीवन ही जग पाता है।।
कहता है यह नित दिन आकर
मृत्यु क्षय नहीं प्रकृति में
यह भी एक सृजन है।
एक बीज क्षय कर अपने को,
सौ को उपजता है।।
अपने को न्योछावर कर यह
बड़ा संदेश दे जाता है।
मरण को भी वरण कर कहता,
प्रकृति बड़ी सहृदय है।।
प्रकृति का इस रूप देखकर
होता है प्रतीत यही
नित दिन प्रातः आता सूरज
नित यही सिखलाता है।।
जीवन का नहीं केवल
मरण का भी जय है।
विशाल सहृदय इस प्रकृति में,
जीवन और मरण का
दोनों का जय है।।
संजय कुमार
जिला शिक्षा पदाधिकारी
अररिया, बिहार
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