कर्मवान,परिश्रम कर हर बाधाओं को करते जाते पार
आशा जगती मनुज के, लगनशील होते जाते अपार।
फिर कह उठते जगो! परिश्रम सफलता की कुंजी है
कार्यरत हो परिणाम देती,यह सफलता रुपी पूंजी है।
पहले आती जब मार्ग में बाधाएं, कंटक और निराशा
तब शनै-शनै परिश्रम देती, यह परिणाम रुपी आशा।
मनुज खातें जब ठोकरें, तब हो जाते मानो निष्प्राण
जब-जब करते पुनर्प्रयास, फिर जग जाते उनके प्राण।
सीख मिलती चींटियों के अनुशासन और कर्मबद्धता से
इसने कभी न हार मानी,जीते रहे अपने प्रतिबद्धता से।
जब पहुंचे हम चांद,मंगल और अंतरिक्ष की सतह तक
पता चला अथक परिश्रम-लगन से मिली, फतह तक।
जीवन की हर प्रतियोगिता में शामिल होना है जरुरी
हार में भी जीत की लालसा करती आशान्वित जरुरी।
हैं जमीं और आसमां तक, हर इक के अरमान बांकी
समय-काल बता देता है, परिश्रम रुपी कई-कई झांकी ।
कर्मवान,परिश्रम कर हर बाधाओं को करते जाते पार
आशा जगती मनुज के, लगनशील होते जाते अपार।
- @सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक, पटना (बिहार)
स्वरचित मौलिक रचना
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