पृथ्वी की है करुणा पुकार–:
पृथ्वी की है करूणा पुकार, सुन लो मनुष्य इसे बार-बार ।
महलों-दो महलों को बनाकर, हम पर मत डालो इतना भार।
सभी वृक्षों को नष्ट करके, क्यों उजारते हो मेरा संसार
पृथवी की है करूणा पुकार————————
सब की जीवन दाता बनती हूँ, जग की भाग्य विधाता कहलाती हूँ।
सब जीवों पर करने दो उपकर, क्यो करते हो पहाङों पर विस्फोटक वार।
क्यों उतारते हो सुन्दर संसार, पृथ्वी की है करूणा पुकार। ————————,—
मेरे बाग और बगीचे सुन्दर, मै और मेरी आकृति सुन्दर।
मेरी मिट्टी में पला-बढ़ा तू, तब अपना संसार गढ़ा तू
अब सब कोई कर ले विचार, मत उजार यह सुन्दर संसार।
पृथ्वी की है करूणा पुकार————————
हम तो तेरे लिए तैयार, तुम करो मेरे लिये विचार,
मेरे सब्र का बाँध अगर टूटा, सब अनाथ और भाग्य का फूटा।
करोगे अगर मेरे साथ अन्याय, क्या सह पाओगे मेरी रूद्र न्याय।
कभी बाढ तो कभी सूखा, और भूकम्प जैसे आपदा।
कैसे रह पाओगे भूखे सब यार, मत उजार यह सुन्दर संसार।
पृथ्वी की है करूणा पुकार, —————————।
—लेखक-अरविंद कुमार अमर ,शारीरिक शिक्षक)-मध्य विद्यालय चातर-संकुल:-उ-उ -वि-पैकटोला-जिला- अररिया (बिहार)।
पृथ्वी की है करुणा पुकार-अरविंद कुमार अमर
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