प्रकाश संश्लेषण – विधा दोहें – राम किशोर पाठक

प्रकाश संश्लेषण – दोहें

जिज्ञासा बच्चे लिए, गुरुवर करें निदान।
कैसे भोजन पेड़ में, बनता है श्रीमान।।०१।।

कैसे पोषण पा रहा, इसका कहें विधान।
प्रकाश संश्लेषण किसे, कहते हैं श्रीमान।।०२।।

हरित लवक जिस भाग में, मिलता सदा विशेष।
पल्लव हीं वह भाग है, होता इसका श्लेष।।०३।।

प्रकाशीय ऊर्जा जहाँ, बदला करता नित्य।
ऊर्जा रासायनिक बन, करता पोषण कृत्य।।०४।।

होती यह हर भाग में, पल्लव जिसमें खास।
मीसोफिल उत्तक जहाँ, लेता है विन्यास।।०५।।

मूलरोम शोषित करे, मृदा नीर पहचान।
वाहक बनता जाइलम, दल को करे प्रदान।।०६।।

कार्बन डाइऑक्साइड, खींच रहा दल रंध्र।
सूर्य किरण ऊर्जा भरे, हरित-लवक सह अंध्र।।०७।।

कार्बन डाइऑक्साइड, मिलकर जल के संग।
कार्बोहाइड्रेट बने, पोषण का है अंग।।०८।।

प्राणवायु फिर रंध्र से, करे वायु को तंग।
भेज रहा फ्लोएम है, पोषण सारे अंग।।०९।।

मानव, तरुवर जीव का, पोषण है आधार।
होता विकास अनुरूप हीं, करें सहज स्वीकार।।१०।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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