फिर संस्कृत अपनाइए – दोहावली
फिर संस्कृत अपनाइए, यह संस्कृति की जान।
इस भाषा के अन्त: में, भरा पड़ा विज्ञान।।१।।
अपनी संस्कृति बचाएँ, दे संस्कृत को मान।
इसके अंदर है छिपा, जीवन का हर ज्ञान।।२।।
सदियों से संस्कृत वही, करती सीख प्रदान।
भारत की जो सभ्यता, पायी बना महान।।३।।
हर भाषा की मॉं यही, ममता की है खान।
संस्कृत करती सिद्ध यह, वेदों का दे ज्ञान।।४।।
प्रकृति सानिध्य हम रखें, देती है यह ज्ञान।
संस्कृत से संस्कार का, होता है उत्थान।।५।।
कायिक वाचिक सम सदा, संस्कृत शुचि विज्ञान।
जीवन का आधार यह, साक्षी बना जहान।।६।।
पुनः संस्कृत अपनाइए, पाइए नव विहान।
शांति संग उन्नति मिले, रखिए यह संज्ञान।।७।।
बनिए समदर्शी सदा, करिए संस्कृत गान।
करें अध्ययन हम इसे, करने को उत्थान।।८।।
सरल सौम्य संस्कृत सहज, रखे अलग पहचान।
जीवन में हरपल करे, समस्या समाधान।।९।।
जीवन सफल बनाइए, होए मत हलकान।
दुर्गुण दूर भगाइए, ले संस्कृत का ज्ञान।।१०।।
रचयिता: राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
