बच्चे और श्रीकृष्ण – रामकिशोर पाठक

 

कहते हैं लोग हैं कान्हा नहीं।

मैं हूॅं कहता, तूने पहचाना नहीं।।

कृष्ण जैसे यशोदा को थें लाडले,

तू भी बच्चों को गर वैसा मान ले,

देख नटखटपन अगर मुस्कुराते रहे,

कृष्ण की लीला से उसे मिलाते रहे,

फिर देखो, कहाँ है वो कान्हा नहीं।

गर नही तो, तूने पहचाना नहीं।।

गर बच्चों में प्यार तुम लुटाते रहे,

उन्हें देखकर श्री कृष्ण ध्याते रहे,

अपने पराये का भेद गर भुलाते रहे,

माखन मिश्री सभी को खिलाते रहे,

फिर देखो कहाँ है वो कान्हा नहीं।

गर नही तो, तूने पहचाना नहीं।।

मीठी बोली को बाँसुरी की तान मान लें,

बच्चे हैं भगवान यह बात जान लें,

फिर पाओगे बना है गोकुल वहीं पर,

उन बच्चों में मिलेंगे कान्हा वहीं पर,

फिर देखो कहाँ है वो कान्हा नहीं।

गर नहीं तो, तूने पहचाना नहीं।।

बच्चे होते हठी, कान्हा की तरह,

आते रोग शोक भी पूतना की तरह,

होती विह्वल भी माँ यशोदा की तरह,

गर मान लें तू यह ज्ञानियों की तरह,

फिर देखो, कहाँ है वो कान्हा नहीं।

गर नहीं तो, तूने पहचाना नहीं।।

रचयिता- राम किशोर पाठक

प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश

पालीगंज, पटना

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply