सत्य अहिंसा का था नारा,
जिसने भारत को सँवारा।
बापू के दृढ़ संकल्पों से,
फूटा स्वाधीनता की धारा।
चलते थे नंगे पाँव मगर,
इच्छा शक्ति अटल थी प्रखर।
डांडी मार्च का जोश जगा,
टूटा फिरंगियों का कहर।
खादी में लिपटा था तन,
लेकिन मन था देशभक्त।
शोषित-पीड़ित को दी राहें,
बन दीपक सर्वत्र परमभक्त।
बोली उनकी थी कोमल,
पर थी सच्चाई से अड़ी।
हर दिल में रोपित कर गए,
शांति, प्रेम सर्वत्र थी खड़ी।
तीस जनवरी का वह क्षण,
रोया भारत संग पूरा चमन।
बापू अमर हैं, सदा अमर रहेंगे,
हर युग में होंगे पूज्य! मिला अमन।
सुरेश कुमार गौरव
प्रधानाध्यापक, उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना(बिहार)
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