गीतिका छंद
सृष्टि सुंदर धूप में।
बाल भोलेनाथ ऐसे, रूप दिखला दें कहीं।
धन्य प्राणी मान ले वो,कामना अरु कुछ नहीं।।
वेशभूषा से लगा है,नाथ बालक रूप में।
क्या गजब वे दिख रहे हैं,सृष्टि सुंदर धूप में।।
तन लपेटे बाघ-छाले,पास डमरू शंकरा।
मुख हरे मुस्कान संगत,ओठ लाली से भरा।।
मध्य माथे तिलक चंदन,पूर्णिमा छवि गढ़ रहा।
दृश्य मनहर देख कवि-मन,छंद माला मढ़ रहा।।
लग रहा है नेक बालक,गेरुआ परिधान से।
बस दिखावा हो रहा है,धर्म पावन नाम से।।
द्वंद में परिवार है यह,बाल को क्या हो गया।
उम्र पढ़ने का जहाॅं है,किस जहाॅं में खो गया।।
देख सावन का महीना,भावना में बढ़ गया।
या नहीं तो फेसबुक का,रंग चोखा चढ़ गया।।
क्यों नहीं’अनजान’गुरु से,तर्क करना चाहिए।
बाल कोरा से यहाॅं तो,फर्क रहना चाहिए?।।
बाल कोरा है जहाॅं में,सच नहीं लगता कहा।
था यहीं अभिमन्यु छोरा,गर्भ से शिक्षित रहा।।
शिक्ष करना है जरूरी,चाहना को देखकर।
लौह को सब पीटते हैं,अग्नि ऊपर सेंककर।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रधान,
मध्य विद्यालय दरवेभदौर प्रखंड पंडारक पटना
रामपाल प्रसाद सिंह'अनजान'

