माता की दुलारी बेटी,
दुनिया में न्यारी बेटी,
आसमान छूने का ये, तरीका नायाब है।
खतरों से खेल कर,
दबावों को झेलकर,
होता है सफल वो जो, झेलता दबाव है।
परीक्षा की परेशानी,
पर नहीं हार मानी,
दिल से कोशिश सदा, होता कामयाब है।
बादलों को चीर कर,
‘रवि’ है बाहर आता,
भीड़ में चमक रहा, जैसे आफताब है।
दिल में रख अरमान,
बनाती है पहचान,
घर बैठी-बैठी सिर्फ, देखती न ख्वाब है।
आकांक्षा जैसी बेटियां,
बेलती नहीं रोटियां,
समाज पर छोड़ती, अपना प्रभाव है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
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