बेटी के सपने की उड़ान को,
अब कमतर कर नही तौलेंगे।
बेटी सफलता की उड़ान है,
उस पर कीचड़ नही उछालेंगे।।
बेटा बेटी के अंतर को,
अब पाटना बहुत जरूरी है।
जब यह संसार बेटी से है तो,
सब इसके बिना अधूरी है।।
समता का संबंध यहाँ पर,
भेद न मानें बेटा बेटी में।
लक्ष्य हो जितना बड़ा करें ,
इतिहास बंद है पेटी में।।
कल्पना, सुनीता ने इतिहास रच दिया ,
अंतरिक्ष की ऊँची उड़ान में।
अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया ,
अंतरिक्ष विज्ञान की शान में।।
बेटी लक्ष्मी का रूप होती है,
यह सरस्वती की अवतारी है।
दुर्गा बन वह पराक्रम करती,
सच में नौ रूपों की अधिकारी है।।
खेल -कूद में भी बेटी ने,
नवल इतिहास बनाया है।
विश्व रंगमंच पर भी भारत का,
स्वाभिमान बार-बार जगाया है।।
सभी क्षेत्र की यही हालत है,
बेटी ने सदा जलवा दिखलाया है।
धरती से अंतरिक्ष उड़ान तक,
अपनी सत्ता को झलकाया है।।
सीमा में प्रहरी की सेवा हो,
या विमान की विशद उड़ान में।
सर्वत्र उसने सफलता पाई है,
अमित उद्यम के मुस्कान में।।
भाषा में भी अव्वल दर्जा पाई,
सुभद्रा कुमारी चौहान ने।
अल्पवय में ही शब्दावली घोला,
अपनी अनुपम कृति उद्यान में।।
बेटी दोनों कुल की मर्यादा है,
दोनों कुल की तारणहार है।
उसी के वश में सृजन सृष्टि है,
वही अनुपम देती उपहार है।।
बेटी दिवस के शुभ अवसर पर,
आज ही सब उसे आश्वस्त करें।
उसके सपने, उसकी ऊर्जा को,
उसे सब मिलकर प्रशस्त करें।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर