भारत के प्राचीन ग्रंथ- गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

वेद-वेदान्त की है उक्ति यही,
सदा बनो निर्भीक, कहो सोsहं ,
उपनिषद कहते हैं, ‘तत्त्वमसि’,
तुम में ही है ‘ब्रह्म’, तू न अकिंचन।

ऋषि व्यास जी ने है रचा,
शुभकर अष्टदश पुराण,
नि:स्वार्थ, कर हित सबका,
हर पुराण का यही है ज्ञान ।

रामायण की है सीख यही,
प्रेम, भक्ति, मर्यादा का ज्ञान,
महाभारत हैं सिखलाते हमें,
कर्तव्य,धर्म और नीति महान ।

भगवद्गीता का है उपदेश यही,
श्रेष्ठ आदर्श का तू रखकर ध्यान,
होकर अनासक्त, होकर निष्काम,
निरंतर कर्म पथ पर कर प्रयाण ।

सत्य मार्ग पर चलें अविरल,
तभी हो इन ग्रंथों का मान,
मानवता से बढ़कर जग में,
नहीं दूजा कोई धर्म महान ।

गिरीन्द्र मोहन झा, +2 भागीरथ उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा

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