छंद:-मनहरण घनाक्षरी
“सियाराम”
पहनते पीताम्बर,सियाराम साथ-साथ,
भोर उठे साथ चले,प्रीतम का प्रीत है।
हाथ पकड़े सिया का,कभी न अलग हुआ,
घर-बार सब छुटा,करुणा अगीत है।
तरनी में नाव चली,वानरों की सेना खड़ी,
साथ-साथ चल पड़े,भावना की जीत है।
राहों पर कांटे बिछी,दुःख भरी गाथा सही,
सुख-दुःख आता जाता,जीवन की रीत है।
एस.के.पूनम(स.शि.)पटना
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