अपनी ममता की छाँव देकर तुमको गले लगाऊँ मैं।
तुम हो मेरे कृष्ण-कन्हैया तुमको पाकर इठलाऊँ मैं।।
रौशन तुमसे चाँद सितारे तुम मेरे आँखों के तारे,
मेरी आँखों की नींद भी लेकर सो जा मेरे मुन्ना प्यारे।
नजर लगे ना कहीं दुनिया की सोच-सोच घबराऊ मैं।।
अपने दिल का दर्द छुपा कर तुम्हे सुनाऊँ गा कर लोरी,
इस मतलबी दुनिया में संतान होती मां की कमजोरी।
कितना तुम अनमोल रतन हो कैसे तुम्हें बतलाऊँ मैं।।
खुशी की है नहीं ठिकाना जब से गूँजी है किलकारी,
रोम-रोम है पुलकित हो रहा कहला के तेरी महतारी।
बिना पंखों के नील गगन में चाहती हूँ उड़ जाऊँ मैं।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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