माँ जग में सबसे महान, दिव्य ममता का है रूप अनोखा।
त्याग, प्रेम औ’ स्नेह की गंगा, निर्मल जैसे पावन मन झरोखा।।
कोमल धारा, वात्सल्य प्यारा, सुख-दुख सब अपनाती है।
अपने आँचल की छाया में, दुनिया की पीड़ा हर जाती है।।
जीवन संतान के हर रोदन पर, वह सहसा दौड़ी आती है।
अपने सुख का त्याग निभाकर, जग में स्नेह दीप जलाती है।।
माँ के बिना यह जीवन सूना, जैसे जल बिना मीन हो।
उसकी छाया जब तक रहती, चाहे मौसम पल छिन हो।।
शब्द नहीं जो व्याख्या कर दें, माँ का अद्भुत त्याग यहाँ।
संसार का सर्वोच्च चरित्र, माँ ही साक्षात् जहाँ भाग्य वहाँ।।
माँ की महिमा कोटि-कोटि नमन, चरणों में शीश झुकाएँ हम।
उसकी ममता, उसका आदर, जीवन भर शीश नवाएँ हम।।
सुरेश कुमार गौरव
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)