मैं भारत, ज्ञान प्रदाता हूँ।
प्रज्ञा की ज्योति जलाता हूँ।।
अपनी संस्कृति, सबसे सुंदर,
यह जन-जन को बतलाता हूँ।
मैं भारत ———————।
माटी का कण-कण है प्यारा।
इसका वैभव अद्भुत न्यारा।।
गंगा की धारा शुचि पावन,
मैं उसका गौरव गाता हूँ।
मैं भारत ———————।
मैं राम कृष्ण का जन्मस्थल।
सुरसरिता का हूँ निर्मल जल
मलयागिरि के चंदन से नित,
शुचिता-सुवास फैलाता हूँ।
मैं भारत ———————।
गीता नित हृदय मुग्ध करती।
सारिका नेह-आँचल भरती।।
प्रतिदिन संतों की वाणी से,
सबके मन को सरसाता हूँ।
मैं भारत ———————।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार
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