तक्षशिला, नालंदा जैसी, अविरल ज्ञान की धारा है।
जन्मभूमि यह भारत-भू है, यह सौभाग्य हमारा है।।
ज्ञान, कर्म के दीप यहाँ पर, सदा उजाला करते हैं,
गुरु-शिष्य की परंपरा में, दिव्य ज्ञान यह भरते हैं,
चंद्रगुप्त-चाणक्य सरीखा, स्वर्ण इतिहास हमारा है।
जन्मभूमि यह भारत-भू है, यह सौभाग्य हमारा है।।
गुरु हैं पारस जिसको छूते, वह कुंदन बन जाता है,
गुरु के हाथों तपकर-ढलकर शिष्य निखरता जाता है,
शिष्य का हो जब सहज समर्पण, गुरु ने उसे निखारा है।
जन्मभूमि यह भारत-भू है, यह सौभाग्य हमारा है।।
गुरु हैं माली, नित्य सींचते, बीज को वृक्ष बनाते हैं,
कुंभकार बन शिष्य सुमन को, सुगढ़ ढालते जाते हैं,
वह महका है चंदन बनकर, जिसने गुरु को वारा है।
जन्मभूमि यह भारत-भू है, यह सौभाग्य हमारा है।।
अनगढ़ पत्थर शिल्पकार को, स्वयं सौंप जब देता है,
मन-मंदिर में स्थापित होकर, रूप ईश का लेता है,
स्वयं को खोकर सब कुछ पाया, गुरु ने पार उतारा है।
जन्मभूमि यह भारत-भू है, यह सौभाग्य हमारा है।।
रत्ना प्रिया ‘शिक्षिका’ (11 –12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर
चंडी ,नालंदा