प्रियवर! रंगोत्सव आई है
सुख में भी हंसना
दुख को भूल जाना
जी भरके जीवन तराने गाना
रंगोली बन खुद को बहलाना
प्रियवर! रंगोत्सव आई है
जीवन राग सुनाने आई है।
कई आए और चले गए
प्रकृति फिर भी मन भाए
कहे गाओ जीवन तराना
भले हो जीवन एक फ़साना
जीवन रंग में तुम रंग जाना
दुखमय जीवन को बहलाना
इसी बहाने कुछ पल गा ले
रंग-बिरंगी जीवन राग सुना दे
प्रियवर! रंगोत्सव आई है
जीवन राग सुनाने आई है।
भेद मिटाएं, द्वेष-विद्वेष भूल जाएं
भाईचारे की भावना में रम जाएं
आनेवाले तो चले ही जाते हैं
यादें अपनी छोड़ ही जाते हैं
फर्क मिटाएं जीवन बस कर्म हैं
ये घर तो एक सराय खाना है
तेरा-मेरा से बस निकलना है
इस जीवन रंग में रंग जाना है
प्रियवर! रंगोत्सव आई है
जीवन राग सुनाने आई है।
सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,उ.म.वि.रसलपुर,फतुहा,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
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