रक्षाबंधन एक एहसास – राम किशोर पाठक

 

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

कृष्ण की अँगुली पर द्रौपदी के साड़ी का कोर,

नारायण को ॠणी किया स्नेह का डोर,

लाज जिसकी रखी सभा में लगा साड़ी का अंबार।

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

कर्णावती ने भेजी जब हुमायूँ को पाती,

भैया शब्द से पुलकित कर अपनी छाती,

संरक्षक बन गया सीमा पर तब उसकी तलवार।

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

पर सिमट गया एहसास हमारा बस अपने तक,

औरों के लिए तो महज एक खबर बनाने तक,

आज भी द्रौपदी मिल जाती कर रही गुहार।

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

तभी तो निर्भया आज भी निर्वस्त्र है,

किसी न किसी रूप में हर बहन त्रस्त है,

अपनी अस्मिता के लिए लगाती हैं भाई को पुकार।

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

प्रेम में कहाँ कभी कोई बंधन होता है,

यह तो अलौकिक प्रकृति का सर्जन होता है,

खुद भी उतना पाते जितना करते इसका विस्तार।

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

रक्षा का भाव जगाने वाला है प्रेम का यह बंधन,

जिसमें है भाव यह आया युग करता है अभिनंदन,

पाठक शब्दहीन हो क्या कर पायेगा इसका प्रसार।

न पर्व है न त्योहार है यह तो है बस आपसी प्यार।

मिलन है स्मरण है इसका भावपूर्ण है अनूठा संसार।

रचयिता- राम किशोर पाठक

प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश

पालीगंज, पटना

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