राष्ट्रभावना की प्रबल ज्वाल में ,
नवगीत नित्य गाता हूँ ।
स्वप्नों में दिव्य चिनगारी है वह ,
जिसे रोज लिए फिरता हूँ ।
प्राण समर्पण करने से राष्ट्रहित ,
यदि होता समग्र उचित है ।
तो हे कर्णधारों लो मेरा समर्पण ,
तब प्राण रखना अनुचित है ।
स्वर्णिम छटा सुवासित होने में ,
न अरुणोदय की आस करें हम ।
राष्ट्र – मान की रक्षा करने में ,
सब मिलकर डट जाएँ हम ।
प्राण समर्पण करने से ,
नित नवोल्लास भी छाया ।
राष्ट्रभक्ति का दीप लिए ,
फिर कौन बुझाने पाया ?
राष्ट्रभक्ति ही जीवन सम्बल है ,
राष्ट्रभक्ति ही शांति ।
राष्ट्रभक्ति ही प्रखर ज्योति है ,
राष्ट्रभक्ति ही क्रांति ।
जीवन मे उल्लास है भरती ,
यह राष्ट्रभक्ति की भाषा ।
इसके विलग कहाँ गढ़ती है ,
यह जन -जन की परिभाषा ?
मन मे नव उल्लास लिए ,
नव राष्ट्रगीत गाता हूँ ।
जीवन मर्म राष्ट्रभक्ति से ,
नित -नित यह बतलाता हूँ ।
करके नया नित संकल्प मन मे ,
भविष्य की राग सुनाता हूँ ।
राष्ट्रभावना की प्रबल ज्वाल में ,
नवगीत नित्य गाता हूँ ।
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा , मुज़फ़्फ़रपुर