प्रेम है राजू को केवल
रोटी और चाँद से
रोटी
जो मिटाती है भूख उसकी
देती है उसे नींद, संतोष
आकाश भर
चाँद
जो बढ़ाता है भूख उसकी
मिटाता है नींद
और भर देता है उसकी आँखों में स्वप्न
कुछ कर गुजरने के
माँ का भरोसा
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अव्वल आना है आज तुझे
नहीं सुनना
कुछ और मुझे
प्रेम के अन्न को
परोसती मेरे सम्मुख
माँ मेरी
जब कहती है मुझसे यूँ कभी
कण अन्न का
देता हुआ उलाहना मुझे
फंस कर रह जाता है कहीं
हलक में मेरे
नाम- शिल्पीपेशा- शिक्षिका ( उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय सैनो जगदीशपुर भागलपुर),पता- वास्तु विहार, भागलपुर( बिहार )
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