जाना है दूर मंजिल तुम्हे ,
चाहे मुश्किलों का दौर हो ।
सोए से जब जगे तुम ,
चाहे हर मुश्किलों का ठौर हो ।
मुश्किलों को छोड़ यूँ ,
आराम में पग मत धरो ।
कायरों की बात नही ,
केवल वीरता वरण करो ।
सोद्देश्य की प्रतिपूर्ति में ,
एकाग्रता से चल पडो ।
जिंदगी जिओ या फिर छोड़ दो ,
न कभी कायरता वरो ।
मंजिले भी जानती हैं ,
किसका हौसला कितना बड़ा ?
कौन कितने पानी मे है ,
कौन रह सकता खड़ा ?
लक्ष्य की प्रतिपूर्ति में ,
न धैर्य खोना क्षण कभी ।
ध्येय जब हो सामने ,
मिलती सफलता भी तभी ।
जब जगे तभी सबेरा ,
इस संकल्प से सदा आगे बढ़ो ।
लक्ष्य कभी छोटा न हो ,
इतनी हिम्मत हो -हिमालय चढ़ो ।
कर्त्तव्य तुम इतना करो ,
यह स्वयं तेरी पहचान हो ।
खोज ले दुनिया तुम्हे ,
इतनी शक्ति का तुझे भान हो ।
जो तुम्हे चाहिए यथा ,
संकल्पबद्ध सब करते रहो ।
भटको न कभी भ्रांति में ,
निज कर्म अर्पित करते रहो ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )