वर्षा और जीवन – अंजनेय छंद
धूम मचाकर बरसा आती।
नभ में अपनी नाच दिखाती।।
भिन्न-भिन्न वह वेश बनाती।
अवनी देख जिसे इठलाती।।
मन का मयूर झूम रहा है।
धरती अम्बर चूम रहा है।।
सभी चराचर राहत पाये।
तन-मन जो सबका हर्षाये।।
वर्षा वरती जीवन सबको।
देती यौवन है तरुवर को।।
उपवन में फूल खिलाती है।
खुशबू समीर भर जाती है।।
तपती धरती गीली पड़ती।
उर्वरता है इससे बढ़ती।।
सुंदर-सुंदर पाठ पढ़ाती।
अन्नपूर्णा अवनि कहलाती।।
पोषण सबको जिससे होता।
भूखा रहकर जीव न सोता।।
धरती उर्वर करने वाली।
भूतल पर लाती हरियाली।।
भूजल का संतुलन बनाए।
अन्न-भंडार जग अपनाए।।
हर्षाकर पाठक कहता है।
इससे हीं जीवन रहता है।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
