संकट के बादल जब छाए,
वीरों ने हुँकार लगाया।
दुश्मन के सीने पर हमने ,
हर बार तिरंगा लहराया।।
याद करो वह सिंहासन,
गोरी को जिस पर थर्राया।
ये उसी वीर की भूमि है,
राणा ने जिससे गुर्राया।।
मत देख मेरे सरहद को तुम,
कारगिल में लोहा मनवाया।
जब बज हीं गई है रणभेरी,
फिर देख तिरंगा लहराया।।
ये अपराध तुम्हारा क्षम्य नहीं,
माँ- बहनों का सिंदूर पोंछ रुलाया है।
होगा अंतिम सबक तुम्हारा,
खुद काल को तुम ने बुलाया है।।
नितेश आनन्द
(विद्यालय अध्यापक)
NPS बढ़ई टोल बहरामपुर,
मंसूरचक, बेगूसराय
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