सदा सुहागन का वर मांगू, हे प्रभु विनती कर तुमसे।
रखना सलामत मेरे पिया को,भक्ति करूं तेरी तन मन से।
सुंदर सुखमय साथ सजन के,बनके मैं वामांगी रहूं।
दे यही वर प्रभु सात जनम क्या, जन्मों जनम संग साथ चलूं ।
फल मेवा मिष्ठान चढ़ाऊं , खुशियां मिली पिया दर्शन से
सदा सुहागन….
पिया से हीं श्रृंगार है मेरा ,वही तो है जीवन मेरे।
आबाद रखना मेरे सजन को, द्वार खड़ी हूं मैं तेरे।
भक्ति भाव से तुम्हें पुकारूं लागी लगन गुरु चरणन से।
सदा सुहागन…..
एक धरम बस एक व्रत मेरा,तन -मन से पति प्रेम करूं।
कोई आंच ना आए उन पर ,बनके ढाल मैं विपदा हरूं।
मांग सिंदूर से भरी रहे मेरी,निकले सदा मेरे धड़कन से।
सदा सुहागन….
नैनों के काजल माथों की बिन्दी से,खिल- खिल जाए रूप मेरा।
हाथों के कंगन प्रेम पैजनियां से है, घर आंगन गुलजार मेरा।
हरा-भरा संसार रहे यूं, मेरे फूलों की कलियन से।
सदा सुहागन…..
सदाचार की राह चलूं मैं,वो दीपक हैं मैं बाती।
प्रेम हमारे मंहके ऐसे, जैसे मौसम मधुमाती।
है सुंदर संसार हमारा, प्रीत भरे इन उपवन से।
सदा सुहागन का वर मांगू हे प्रभु विनती कर तुमसे।
स्वरचित:-
मनु रमण चेतना,
पूर्णियां बिहार