शब्दों के हैं रूप निराले – चौपाई छंद
यूँ जो ध्वनियाँ बोली जाती।
भावों को अपने बतलाती।।
वर्णों से जो निर्मित होती।
है शब्द वही तो कहलाती।।
शब्दों के है रूप निराले।
इनके शिल्पी बुनते जाले।।
कटु-मधु रस भावों में ढाले।
प्रयोग अर्थ विविध मतवाले।।
आओ जाने इसको ऐसे।
भेद सभी है इसमें वैसे।।
भाषाविद गढ़ते हैं जैसे।
सही आधार रखते कैसे।।
अर्थानुसार दो भेद बने।
सार्थक और निरर्थक कहने।।
प्रयोग में भी दो रूप जने।
अविकारी संग विकारी ने।।
रूप बदलकर बना विकारी।
पुत्रों की है महिमा न्यारी।।
संज्ञा, सर्वनाम कहें विचारी।
क्रिया, विशेषण सबसे भारी।।
पिता चार का अविकारी है।
क्रिया-विशेषण अति न्यारी है।।
संबंध, समुच्चय सुखकारी है।
विस्मयादि से चित हारी है।।
तत्सम, तद्भव दो दीवाने।
देशज और विदेशज जाने।।
भेद उत्पत्ति लिए बहाने।
भाषा समृद्ध लगे बनाने।।
कहें व्युत्पत्ति, रचना बोलें।
तीन भेद की गुत्थी खोलें।।
योगरूढ़, यौगिक, रूढ़ चलें।
इनमें हीं सारे शब्द पलें।।
आगे मिलने जब आएंगे।
सविस्तार सब सिखलाएंगे।।
कठिनाई जो भी पाएंगे।
पाठक अब सरल बनाएंगे।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश, पालीगंज, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
