विदाई के घड़ी,मन की व्यथा,
क्या-क्या सुनाऊं मैं?
ये है विछुड़न की पीड़ा जो,
किसी से कह न पाऊं मैं?
शिक्षा दान करने का तरीका,
आपका अनमोल।
भीतर से स्नेह भरपूर है,
उपर से नीम कड़वा घोल।
बिहसता ज्ञान के मंदिर,
जिसे कैसे दिखाऊं मैं?
विदाई के घड़ी,मन की व्यथा,
क्या-क्या सुनाऊं मैं?
ये है विछुड़न की पीड़ा जो,
किसी से कह न पाऊं मैं?
बितायें साथ में जो पल,
उसे न भूलना है आसान।
सुंदर सेवा भाव से,
सगर है आपका एक नाम।
कटे हंसते हुए जीवन,
यही रब से मनाऊं मैं?
विदाई के घड़ी,मन की व्यथा,
क्या-क्या सुनाऊं मैं?
ये है विछुड़न की पीड़ा जो,
किसी से कह न पाऊं मैं?
ये घर और पद किराये का,
जहां से सबको जाना है।
मगर अपने विचारों से,
ये दुनिया जीत लाना है।
चाहत मेरे भी दिल में है,
किसी के काम आऊं मैं।
विदाई के घड़ी,मन की व्यथा,
क्या-क्या सुनाऊं मैं?
ये है विछुड़न की पीड़ा जो,
किसी से कह न पाऊं मैं?
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30/09/2022
मणिकांत मणि,
प्राथमिक विद्यालय,
हरदिया बेदौली,
पालीगंज,(पटना )