ये जलता विश्व पुकार रहा ,
समुद्र- मंथन के जैसे आ जाइए,
पृथ्वी पटी पड़ी है, जहर से,
हे शिव पुनः ये विष ,पी जाइए ।
धरती का भू जल कम हुआ
वातावरण आग उगल रहा ।
गंगा की शीतलता दीजिए,
संपूर्ण विश्व ये जल रहा।।
स्त्रियां दहेज में जल रहीं,
कमजोरों पर अत्याचार है ।
नटराज बन आ जाइए,
भक्तों की ये ही पुकार है।।
हे भोले शंकर, वरदान दाता
इतना वर हमें दीजिए,।
जो छोड़े हम, ये जीवन कभी
तो शरण में अपनी लीजिए।
इस पापी जग के प्राणीयों
में पुण्य ज्योत जलाईये।
है जलता विश्व पुकार रहा,
शिव पुनः विष पी जाइए ।।
अंजली कुमारी
प्रा वि धर्मागतपुर, मुरौल मुजफ्फरपुर ।
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