शुभ्रक की अमर गाथा – अवनीश कुमार

आओ सुनाऊँ तुम्हें,

एक बेज़ुबान, स्वामीभक्त शुभ्रक की अमर कहानी…

जब ऐबक ने राजपुताना लूटा,

मेवाड़ का वैभव मिट्टी में रौंदा,

राजा रावल सामंत सिंह का रक्त बहाया,

राजकुमार करण सिंह को बंदी बनाया।

लूटी संपदा, लूटा वैभव, छीना सम्मान,

सिंह-शुभ्रक संग ऐबक पहुँचा लाहौर दरबार।

पर सिंह सिंह-सा जो ठहरा,

अपनी गर्जना से दरबार हिला डाला,

क्रुद्ध ऐबक ने फरमान सुनाया—

“इसका शीश बनेगा क्रीडा गेंद

पोलो खेलकर लेंगे आनंद!”

शुभ्रक पर चढ़कर ऐबक,

शीश सिंह का छीनने आया

पर जैसे हीं घोड़े ने स्वामी को देखा,

स्वामी ने घोड़े को देखा

दोनों ने, आँखों हीं आँखों मे शत्रु को देखा

तुरंत हीं…..

थर्राई धरती,गरजे बादल,बिजली चमकी, नभ डोला।

शुभ्रक उछला, बिजली-सा कौंधा,

ऐबक को मर्मांतक झटका

ऐबक को प्रणान्तक पटका।

न तीर, न वार, न तलवार,न कटार

बस स्वामीभक्ति का अचूक प्रहार

बस स्वामीभक्ति का अचूक प्रहार।

क्षण क्या! पल क्या!

छटाँक भर में ऐबक धरा पर गिरा,

और काल के गाल मे न जाने कब समा गया।

शीश छीनने वाले का दु:दिन आ गया

शीश छीनने वाले का दु:दिन आ गया।

भौंचक्के दरबारी-गण

मौका देख शुभ्रक नयन,

स्वामी को पीठ पर बैठाए,

बन आँधी,बन बवंडर, बन सिकंदर

उड़ चला शुभ्रक स्वामी संग मेवाड़-रण

उड़ चला शुभ्रक स्वामी संग मेवाड़-रण

तीन दिवस, बिना थमे,

पहुंचा वह राजे के द्वार,

स्वामी संग—अडिग,अटल,

थका तन, किन्तु थका न मन।

राजकुमार शुभ्रक से उतरे,

लिए अश्रु भरे लोचन,

शुभ्रक नि:छल, स्थिर खड़ा।

स्नेह से सिंह ने शुभ्रक का माथा चूमा,

आँखों में उमड़ा आभार,

लेकर अपना पुत्रवत प्यार

किन्तु…..

देकर अपनी स्वामीभक्ति का एहसास

शुभ्रक ने ली अंतिम श्वास।

घोड़े का बलिदान अमर हुआ,

शुभ्रक-सा स्वामीभक्त फिर न कोई हुआ।

आज भी शुभ्रक के टापों की गूंज,

वीरता का राग-गीत सुनाती है,

स्वामीभक्ति का मंत्र दुहराती है

स्वामीभक्ति का मंत्र सुनाती है।

अवनीश कुमार

बिहार शिक्षा सेवा ( शोध व अध्यापन उपसंवर्ग )

व्याख्याता

प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय विष्णुपुर बेगूसराय

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