संख्या का ज्ञान करें प्रदान-
बच्चे कोरे कागज जैसे।
संख्या ज्ञान कराएँ कैसे।।
अंक शून्य से नौ तक रहता।
संख्याओं का मेला लगता।।
बच्चे इनको समझ न पाते।
जबतक अमूर्त भाव बताते।।
बच्चे जिन शब्दों को जानें।
अपनी भाषा से पहचानें।।
वैसी वस्तु पड़े दिखलाना।
गिनती करना उसे बताना।।
कंकड़ पत्थर जो भी मिलता।
आस-पास का प्यारा रहता।।
जहाँ न हो तो बच्चों से हीं।
देते गणना की समझ सही।।
सभी हटाकर रिक्त बनाएँ।
शून्य अंक की समझ बनाएँ।।
अंकों के चिह्न प्रतीकों से ।
कोई उत्कृष्ट सलीकों से।।
हम उनको आभास दिलायें।
फिर अमूर्त का बोध करायें।।
बढ़ना-घटना जब समझाएँ।
गिनती आगे- पीछे पाएँ।।
अंकों से संख्या बनवाएँ।
तुलना जीवन से सिखलाएंँ।।
कुछ दिन का अभ्यास कराना।
फिर दो अंकों को बतलाना।।
अन्य क्रिया भी कर दिखलाना।
धैर्य नहीं है जरा गँवाना।।
भूल लाजिमी करते बच्चे।
क्योंकि समझ उनके हैं कच्चे।।
हमको तो सूझ दिखाना है।
संख्या का ज्ञान कराना है।।
बार-बार द्रव्यों को लाना।
काम हमारा है बतलाना।।
सहज सीख जब उनको होगा।
काम आसान सबका होगा।।
उनसे रुचिकर कार्य कराएँ।
खेल – खेल में हम समझाएँ।।
कठिनाई का भाव मिटाएँ।
संख्या की अब समझ बनाएँ।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज पटना।
संपर्क – 9835232978
