लिए खिलौने हाथ में,
खेलने को हम सब बेकरार।
पापा निकले घर से,
हम सब हुए फरार।
देख उनकी त्योरी,
रही न बुद्धि माथ।
असमय खेलने का यह प्रतिफल मिला,
हम सब पकड़े गए रंगे हाथ।
सोच -समझकर नित खेलें हम,
तनिक समय का भी करें विचार।
असमय ऐसी गलती कभी हुई,
तो अब बहुत पड़ेगी मार।
बालपन में खेल का,
है बहुत अधिक महत्त्व।
खेल भावना से हम जुड़ें,
आए जीवन में समत्व।
अभी जो अच्छी आदत पड़े,
वह जीवन भर सुहाय।
गलत आदत एक भी बन पड़े,
तो जीवन नरक बन जाय।
गलती कभी जब बन पड़े,
तब दिल में आए चोट।
करनी सब अच्छा करें,
न कभी दिल में रहे कचोट।
हम अपने साथी संगी से,
रखें कभी न बैर।
आपस में सब हिलमिल रहें,
करें आनंद की सैर।
माता पिता की बात है,
अमृत से भी महान।
उनके चरणों में नित मिले ,
सारा सकल जहान।
खेल समय से हम करें ,
समय से पढ़ने को हम जाएँ।
जीवन में ऐसी खुशियाँ मिलें,
सब कुछ मनमाफिक पाएँ।
संगति ऐसी हो सदा,
जो हरदम आवे काम।
माता-पिता की इज्जत बढ़े,
जग में भी बढ़ जाए नाम।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुज़फ्फरपुर