सर्दी का है मौसम आया
घना कोहरा भी है छाया।
सुबह-सुबह हीं हम जागें
जल्दी से स्कूल हम भागें।
ठंढे पानी से नहीं नहाना
कर जाते हैं कोई बहाना।
स्वेटर टोपी खूब है भाते
पहन जिसे हम इठलाते।
बैठें शांत तो लगती सर्दी
पढ़ना-लिखना है बेदर्दी।
गर्म दूध और चाय भाता
पीकर जिसे सर्दी जाता।
बूढ़े थर-थर काँपते रहते
सहन नहीं होती है कहते।
दुबक रजाई में वो रहते
या आग जला तापते रहते।
पर हम बच्चे डरते नहीं
दुबक- दुबक रहते नहीं।
धमा चौकड़ी खेलें खेल
सर्दी गयी अब लेने तेल।
रचयिता – राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया
इंगलिश पालीगंज, पटना
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