सुख सुविधाओं के चक्कर में- सरसी छंद गीत- राम किशोर पाठक

सुख सुविधाओं के चक्कर में- सरसी छंद गीत

अपने हाथों से जीवन में, घोल रहा विष जान।
सुख सुविधाओं के चक्कर में, आज पड़ा इंसान।।

श्रम से बचता फिरता मानव, करता विविध प्रयोग।
संसाधन को करे इकठ्ठा, मन में पाले रोग।।
काम आराम से हो जाए, रखता इसका ध्यान।
सुख सुविधाओं के चक्कर में, आज पड़ा इंसान।।०१।।

मन को अंकुश लगा न पाएँ, तन का बिगड़ा रूप।
अंधानुकरण करते सारे, चाहे बनें अनूप।।
तरह-तरह के यंत्र लगाकर, दिखलाता है शान।
सुख सुविधाओं के चक्कर में, आज पड़ा इंसान।।०२।।

तौर तरीके बदल चुका है, चलना पैदल छोड़।
खाना पीना बाहर होता, घर से मुँह को मोड़।।
स्वास्थ्य समस्या बनी सभी की, सारे हैं हलकान।
सुख सुविधाओं के चक्कर में, आज पड़ा इंसान।।०३।।

दूर प्रकृति से हुए सभी हैं, महलो पर नैन।
काया रोगी होता जाता, कैसा है यह चैन।।
यंत्र लगाकर यंत्र बना है, खोया निज मुस्कान।
सुख सुविधाओं के चक्कर में, आज पड़ा इंसान।।०४।।

आदत बदला सेहत बिगड़ा, हो गयी आयु छीन।
“पाठक” सब-कुछ पाया फिर भी, रहता जैसे दीन।।
सबसे बड़ा स्वास्थ्य हीं सुख है, भूल गया नादान।
सुख सुविधाओं के चक्कर में, आज पड़ा इंसान।।०५।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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