हरिगीतिका- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

नवरात्रि में माॅं अन्नपूर्णा,

रोहिणी कहलाइए।

तू सात्त्विकी कल्याणकारी,

चंडिका बन आइए।।

काली त्रिमूर्ति महेश्वरी भव,

भद्रकाली नाम हैं।

आराधना करते सभी तो,

लोग जाते धाम हैं।।

संहार दैत्यों के लिए तो,

शस्त्र ले ली हाथ में।

कर में त्रिशूल सुशोभता है,

धर्म तेरे साथ में।।

गंधर्व दानव देव भी तो,

आज विनती कर रहे।

गौरी महारानी तुम्हारे,

प्रेम रस हिय भर रहे।।

लाल चुनरी पहन तू माता,

लाल सबको कर रही।

डमरु लिए बसहा सवारी,

शुभ सुहागिन तर रही।।

दुख हारिणी तू ही सभी के,

दुखहरण कर लीजिए।

नवरूप की पूजा करें जो,

धन्य तू कर दीजिए।।

रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

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